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सफलता की कहानी: भारत की पैरालंपिक लड़कियों ने दुनिया को दिखाया, 'पंखों से नहीं हौसलों से उड़ान होती है'

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सफलता की कहानी: भारत की पैरालंपिक लड़कियों ने दुनिया को दिखाया, 'पंखों से नहीं हौसलों से उड़ान होती है'

PIONEER INDIA NEWS HARYANA : जिस तरह पेरिस पैरालिंपिक में भारत की लड़कियां चमकीं। ये वाकई काबिले तारीफ है. पैरालंपिक में पहुंची इन महिला एथलीटों में से कुछ बिना हाथों के तीरंदाजी में भारत का नाम रोशन कर रही हैं, तो कुछ बिना पैरों के लंबी कूद लगा रही हैं. इन खिलाड़ियों के जज्बे और साहस को देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि उड़ान पंखों से नहीं, हौसलों से होती है. ये उदाहरण उन लोगों के लिए प्रेरणा का काम करेंगे जो बात-बात पर निराश हो जाते हैं।

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पोलियो भी नहीं रोक सका मोना का रास्ता
सबसे पहले बात करते हैं मोना अग्रवाल की। मोना अग्रवाल राजस्थान के सीकर की रहने वाली हैं। मोना अग्रवाल ने अपने पहले पैरालिंपिक में मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया है. उन्होंने महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा (SH1) में कांस्य पदक जीता। 37 साल की उम्र में वह पैरालंपिक तक पहुंच गई हैं। वह दो बच्चों की मां भी हैं. मोना जब नौ महीने की थी तब उसे पोलियो हो गया। उनके दोनों पैरों में पोलियो हो गया, लेकिन पोलियो भी उन्हें रोक नहीं सका। 23 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया और खेलों से जुड़ गईं। आख़िरकार अब वह पैरालंपिक में भारत के लिए पदक जोड़ रही हैं.

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अवनि की व्हीलचेयर से पेरिस पैरालिंपिक तक,
अवनी लेखा ऐसे कई लोगों के लिए मिसाल बन गई हैं जो किन्हीं कारणों से या तो व्हीलचेयर पर हैं या फिर जिंदगी से निराश हैं। अवनी लेखरा छोटी सी उम्र में व्हीलचेयर के सहारे अपनी जिंदगी जी रही हैं। लेकिन उन्होंने व्हीलचेयर पर पेरिस पैरालंपिक का सफर तय किया है। अवनि लेखरा जब महज 11 साल की थीं तब एक सड़क दुर्घटना में घायल हो गईं। इस दुर्घटना में उनकी रीढ़ की हड्डी गंभीर रूप से घायल हो गई. बाद में वह लकवाग्रस्त हो गईं, लेकिन अवनि ने दर्द पर काबू पा लिया और भारत की स्टार पैरा-शूटर बन गईं। उन्होंने पेरिस पैरालिंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया. वह पैरालिंपिक में लगातार दो स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बनीं।

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चुनौतियों के सामने हार नहीं मानती प्रीति
प्रीति पाल ने पेरिस पैरालिंपिक में भारत के लिए पहला पदक जीता है। प्रीति पाल उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की रहने वाली हैं। किसान परिवार में जन्मी प्रीति को जन्म से ही कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। जन्म के ठीक छह दिन बाद उनके शरीर के निचले हिस्से में प्लास्टर लगाना पड़ा। अपने कमजोर और असामान्य पैरों के कारण उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि प्रीति का कई सालों से इलाज चल रहा था, लेकिन कोई खास नतीजा नहीं निकला। उन्हें पांच साल की उम्र में कैलीपर्स पहनने पड़े, जिसका इस्तेमाल आठ साल तक किया गया। इस दौरान उन्हें कई आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा, लेकिन प्रीति ने कभी हार नहीं मानी। आज वह पैरालंपिक में परचम लहरा रही हैं.

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